आजकल अभिनव अरोरा नाम के एक १० वर्ष के बालक के पीछे कई न्यूज चैनल और यू ट्यूब के ब्लोगर पड़े हुए है. कुछ समय पूर्व तक इस बालक को सभी जगह सराहा जा रहा था, उसकी फोटो और वीडियो कई बड़े – बड़े संतों और प्रवचनकर्ताओं के साथ दिखने को मिल जाती थी. फिर एक यू ट्यूब चैनल ने उसके बारे में यह डाला की वह गलत है और उसका उपयोग उसके पिता और माता के द्वारा पैसे कमाने हेतु किया जा रहा है. बस, क्या था सभी उस बालक को झूठा और मक्कार घोषित करने में लग गए. आज ही देख रहा था एक न्यूज चैनल में बड़े बड़े पंडित उससे श्लोक और शास्त्रों के बारे में पूछने में लगे थे. वह बार - बार कह रहा था की मैं तो केवल एक भक्त हूँ कोई प्रकांड पंडित नहीं लेकिन कोई उसकी बात सुनने को तैयार नहीं था. एक महोदय ने तो यहाँ तक कह दिया की अगर उसको इतनी भक्ति है तो सब छोड़ के किसी आश्रम में रहने चले जाना चाहिए.
मैं यह
नहीं कह रहा हूँ की वह बालक गलत है या सही है या उसके माँ बाप उसका गलत उपयोग कर
रहे है पर मेरा केवल एक सवाल है क्या किसी में भी भक्ति उम्र देख के आती है, अगर
हाँ तो प्रहलाद की इतनी छोटी उम्र में भी भगवान् नारायण उसके लिए अवतार क्यों ले
लिए? क्या भक्ति के लिए वेद पुराण
शास्त्रों का ज्ञान होना जरूरी है अगर हाँ तो मीरा और जाने ही कितने भक्त हुए है
उनका क्या वे तो शास्त्रों के नहीं केवल प्रभु के प्रेम की ज्ञाता थी. अगर आज उसके
पिता और माता उसकी भक्ति का गलत उपयोग कर रहे है तो क्या इसमें गलती उस बच्चे की
है? एक बहुत नामी संत ने कहाँ वह तो मुर्ख है अगर वह सोचता है की प्रभु उसके साथ
भोजन करते है. एक बच्चे से ज्यादा साफ किसी का दिल और दिमाग नहीं होता है और हम भी
तो कहते है बच्चों में ही भगवान् रहते है. जब हम यह कहते है तो उसका कारण क्या
होता है, यही न की उनका दिल और दिमाग बिलकुल साफ होता है.
एक कहानी
याद आती है, एक महिला अपनी बहु के पास अपने
ठाकुर जी छोड़ के कहीं बाहर गई और बोल के गई की ठाकुर जी का ख्याल रखना, समय पर भोजन प्रसादी करते रहना. जब कुछ समय बाद
सास वापस आई तो पता चला जब बहु भोजन परोसती है तो ठाकुर जी आ के उसके हाथ का भोजन
पाते है. वह बहु इतनी सीधी थी की जब ठाकुर जी के समक्ष भोजन पधराती और ठाकुर जी
भोजन पाने नहीं आये तो उसने रो रो के बुरा हाल कर लिया की वे सास के हाथ से तो
भोजन लेते है उसके हाथ से क्यों नहीं ले रहे और जब ठाकुर जी ने देखा वह दिल की
बिलकुल साफ़ है तो आ के उसके हाथ से भोजन पाने लगे. जो सास इतने सालों से भोग लगा
रही थी उसके हाथ से तो कभी नहीं पाए. यह कहानी बताती है की अगर हमारा दिल साफ़ है
तो प्रभु हमारे हाथ से भोजन भी लेंगे और हमसे बात भी करेंगे. और अगर संत समाज यह
कहता है की ऐसा नहीं हो सकता, ये तभी
संभव है जब आप वेद पुराण शास्त्रों के ज्ञाता हो तो भक्ति मार्ग की ये सब कहानियां
हमें मिटा देनी चाहिए.
मै यह नहीं कह सकता की वह बालक सही है या नहीं या उसके माता पिता सही है या नहीं लेकिन इस प्रकार से किसी का मजाक बनाना सर्वथा गलत है और नहीं किया जाना चाहिए. अभिनव को मैं केवल इतना बोलना चाहता हूँ की अगर तुम सही हो तो चिंता नहीं करना प्रभु हमेशा भक्त का ही साथ देते है हाँ वे कभी कभी परीक्षा जरुर लेते है और इसमें पास होना जरूरी है बस.
इति शुभ: